4646
रिश्तोंको शब्दोंका,
मोहताज ना बनाइये...
अगर अपना कोई खामोश हैं तो,
खुद ही आवाज लगाइये...!
मोहताज ना बनाइये...
अगर अपना कोई खामोश हैं तो,
खुद ही आवाज लगाइये...!
4647
न बोलूँ, न लिखूँ,
तो ये मत
समझना...
कि भूल गए
हम,
खामोशियोंने भी,
कुछ जिम्मेदारी ले
रखी हैं...
4648
शब्दोंका शोर,
तो कोई भी सुन सकता हैं।
तो कोई भी सुन सकता हैं।
खामोशियोंकी,
आहट समझो तो कोई बात बने।।
आहट समझो तो कोई बात बने।।
4649
धुंआ दर्द बयाँ
करता हैं,
और राख कहानियाँ छोड़ जाती हैं;
कुछ लोगोंकी बातोंमें भी दम
नही होता,
और कुछ लोंगोकी
खामोशियाँ भी
निशानियां
छोड़ जाती हैं.......!
4650
बुद्धिमान
व्यक्ति कई बार,
जवाब होते हुए
भी पलटकर
नही बोलते;
क्योंकि कई बार रिश्तोंको जितानेके लिए,
क्योंकि कई बार रिश्तोंको जितानेके लिए,
खामोश रहकर
हारना जरूरी होता हैं...!
No comments:
Post a Comment