4 August 2019

4571 - 4575 जहाँ आसमाँ मेहमान गम नफरत कुर्बत मुअससर बारिश नाम शायरी


4571
तेरे बगैर मुर्शिद,
हम कुछ भी हीं जहाँमें;
हम तेरा नाम लेके,
उड़ते हैं आसमाँमें...!

4572
"कुछ तो बात हैं मेरी,
मेहमान-नवाजीमें;
की गम एक बार आते हैं तो,
जानेका नाम नहीं लेते...!"

4573
लेकरके मेरा नाम,
मुझे कोसती तो हैं...
नफरतमें ही सही,
पर मुझे सोचती तो हैं...

4574
ये तेरा "नाम" ही हैं,
जो संभाले हुए हैं मुझे;
की "बेक़रार" होकर भी
"बरक़रार" हूँ मैं...!

4575
तेरी कुर्बत भी नहीं मुअससर
और ये बारिश हैं कि
रुकनेका नाम नहीं लेती।

कुर्बत- नजदीक
मुअससर- मौजूद

No comments:

Post a Comment