4571
तेरे बगैर मुर्शिद,
हम कुछ भी
नहीं जहाँमें;
हम तेरा नाम
लेके,
उड़ते
हैं आसमाँमें...!
4572
"कुछ
तो बात हैं
मेरी,
मेहमान-नवाजीमें;
की गम एक
बार आते हैं
तो,
जानेका नाम
नहीं लेते...!"
4573
लेकरके मेरा
नाम,
मुझे कोसती
तो हैं...
नफरतमें ही
सही,
पर मुझे
सोचती तो हैं...
4574
ये तेरा "नाम" ही
हैं,
जो संभाले हुए हैं
मुझे;
की
"बेक़रार" होकर भी
"बरक़रार" हूँ मैं...!
4575
तेरी कुर्बत भी नहीं
ए मुअससर
और ये बारिश
हैं कि
रुकनेका नाम नहीं
लेती।
कुर्बत-
नजदीक
मुअससर-
मौजूद
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