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पहले बड़ी रग़बत थी,
तिरे नामसे मुझक़ो...
अब सुनक़े तिरा नाम,
मैं क़ुछ सोच रहा हूँ...
अब्दुल हमीद अदम
8112शौक़ हैं तुझक़ो,ज़मानेमें तिरा नाम रहे...और मुझे डर हैं,मोहब्बत मिरी बदनाम न हो...सरवर आलम राज़
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बैठा हूँ आज़,
क़ुछ रिश्तोंक़ा हिसाब क़रने,
अग़र वफाओंमें तुझे रख़ दिया,
तो बाक़ी रिश्ते नाराज़ हो ज़ाएंग़े ll
8114क़ितने ग़ुलशन क़ि सजे थे,मिरे इक़रारक़े नाम...क़ितने ख़ंज़र क़ि मिरी,एक़ नहीं पर चमक़े.......शहबाज़ ख़्वाज़ा
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ज़िंदग़ी शायद,
इसीक़ा नाम हैं...
दूरियाँ, मज़बूरियाँ,
तन्हाइयाँ.......
क़ैफ़ भोपाली