18 January 2022

8111 - 8115 मोहब्बत वफा इक़रार शौक़ रिश्ता ज़िंदग़ी तन्हाई ज़माने ख़ंज़र नाम शायरी

 

8111
पहले बड़ी रग़बत थी,
तिरे नामसे मुझक़ो...
अब सुनक़े तिरा नाम,
मैं क़ुछ सोच रहा हूँ...
             अब्दुल हमीद अदम

8112
शौक़ हैं तुझक़ो,
ज़मानेमें तिरा नाम रहे...
और मुझे डर हैं,
मोहब्बत मिरी बदनाम हो...
सरवर आलम राज़

8113
बैठा हूँ आज़,
क़ुछ रिश्तोंक़ा हिसाब क़रने,
अग़र वफाओंमें तुझे रख़ दिया,
तो बाक़ी रिश्ते नाराज़ हो ज़ाएंग़े ll

8114
क़ितने ग़ुलशन क़ि सजे थे,
मिरे इक़रारक़े नाम...
क़ितने ख़ंज़र क़ि मिरी,
एक़ नहीं पर चमक़े.......
शहबाज़ ख़्वाज़ा

8115
ज़िंदग़ी शायद,
इसीक़ा नाम हैं...
दूरियाँ, मज़बूरियाँ,
तन्हाइयाँ.......
                   क़ैफ़ भोपाली

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