14 January 2022

8091 - 8095 दिल मोहब्बत ज़िंदग़ी राह पल नग़्मा अश्क अक़ेला क़दम ज़ख़्म तक़दीर क़सम नाम शायरी

 

8091
तुझे देख़े बिना,
इक़ पल भी क़टता नहीं...
अक़ेलेमें हथेलीपर,
तेरा नाम लिख़ लेते हैं...!

8092
राह--मोहब्बतमें मुसाफ़िर रुक़ा नहीं क़रते l
क़दम तो ग़िन सक़ते हैं पर ज़ख़्म ग़िना नहीं क़रते l
तक़दीर बनानेवाले तूने हद क़र दी l
तक़दीरमें क़िसी और क़ा नाम लिख़ा और,
दिलमें चाहत क़िसी और की भर दी ll

8093
नग़्मोंक़ी इब्तिदा थी,
क़भी मेरे नामसे...
अश्कोंक़ी इंतिहा हूँ,
मुझे याद क़ीज़िए.......
                   साग़र सिद्दीक़ी

8094
ज़िंदग़ी अबक़े मिरा,
नाम शामिल क़रना...
ग़र ये तय हैं क़ि,
यहीं ख़ेल दोबारा होग़ा...
वसी शाह

8095
हर रोज़ ख़ा ज़ाते थे,
वो क़सम मेरे नामक़ी...
आज़ पता चला क़ी जिंदग़ी,
धीरे धीरे ख़त्म क़्यूँ हो रहीं हैं...!

No comments:

Post a Comment