5 January 2022

8056 - 8060 शक़्ल मुश्क़िल मुस्कान मेंहँदी पैग़ाम क़फ़स आँख़ें क़ाज़ल रंग़ हिना तज़ुर्बा नाम शायरी

 

8056
अब उसक़ी शक़्ल भी,
मुश्क़िलसे याद आती हैं...
वो ज़िसक़े नामसे,
होते थे ज़ुदा मिरे लब...
                   अहमद मुश्ताक़

8057
हाथों हथेलियों,
नाम युँ हीं हिनाक़ा होता हैं...
रंग़ सारे पियाक़े होते हैं,
मेंहरबानी होग़ी आपक़ी मुस्कान दिख़ ज़ाए...
चेहरेपर सज़ै आपक़े पैग़ाम दिख़ ज़ाए,
पर्दोंमें छिपाओ आँख़ोंक़ा तुम क़ाज़ल...
क़ाश क़ि मेंहँदीमें तुम्हारी,
हमार नाम दिख़ ज़ाए...

8058
चमनक़ा नाम सुना था,
वले देख़ा हाय...
ज़हाँमें हमने क़फ़स हीं में,
ज़िन्दग़ानीक़ी.......

8059
बहुत हीं तल्ख़ तज़ुर्बेक़ा,
नाम हैं चाहत...
ज़ो तुमक़ो अच्छा लग़े,
बस उससे प्यार मत क़रना...

8060
ज़िंदग़ी ज़िंदा-दिलीक़ा हैं नाम l
मुर्दा-दिल ख़ाक़ ज़िया क़रते हैं...?
                       इमाम बख़्श नासिख़

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