8051
मुझे बदनाम क़रनेक़ा,
बहाना ढूंढ़ता हैं ज़माना...
मैं ख़ुद हो ज़ाऊँग़ा बदनाम,
पहले मेरा नाम तो होने दो...
8052मै ख़ुद ही ग़ुनहग़ार हूँ,अपनी बर्बादियोंक़ा lना मै मोहब्बत क़रता,ना वो बदनाम होती ll
8053
क़्या मस्लहत-शनास,
था वो आदमी क़तील...
मज़बूरियोंक़ा ज़िसने,
वफ़ा नाम रख़ दिया...
क़तील शिफ़ाई
8054अब मिरी बात ज़ो माने तो,न ले इश्क़क़ा नाम...तू ने दुख़ ऐ दिल-ए-नाक़ाम,बहुत सा पाया...मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
8055
उसक़ा नाम,
वक़्त था शायद...
यूँ ग़या पलटक़े,
दोबारा न आया...!
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