29 January 2022

8156 - 8160 दुनिया याद मंज़ूर मयखाने ज़माने इश्क़ मोहोब्बत इज़्ज़त बदनाम शायरी

 

8156
ये जो मोहोब्बतक़ो,
बदनाम क़रते हैं...
सच तो ये हैं क़ी,
इन्हे क़भी क़िसीसे,
मोहोब्बत हुई ही नहीं...

8157
बदनाम होना भी मंज़ूर हैं,
दुनियासे मुंह मोड़ना भी मंज़ूर हैं...
तू दे अगर थोड़ासा सुक़ून मुझे,
तो मौत भी मुझे मंज़ूर हैं.......

8158
इतने बदनाम हुए, हम तो इस ज़मानेमें...
लगेंगी आपक़ो सदियाँ, हमें भुलानेमें...
पीनेक़ा सलीक़ा, पिलानेक़ा शऊर...
ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखानेमें.......
                                       गोपाल दास नीरज़

8159
यारों, यादोंसे उसक़ी,
मेरा पीछा छुड़ाना...
क़मबख्त बदनाम,
क़र रहा हैं उसक़ा याराना...

8160
तेरे इश्क़में हुए हैं,
हम बदनाम...
अब शहरमें अपनी,
इज़्ज़त नहीं रही.......

No comments:

Post a Comment