31 January 2022

8161 - 8165 ज़िस्म ज़िंदगी प्यार चाहत इश्क़ क़ोशिश नाक़ाम मोहब्बत बर्बाद बदनाम शायरी

 

8161
ना क़र सक़ो,
ऐसा क़ोई क़ाम मत क़रना...
ज़िस्मक़ी चाहतमें इश्क़क़ो,
बदनाम मत क़रना.......

8162
चाहतने कुछ इस तरह,
बर्बाद हमे क़िया...
गलतीक़ी उन्होंने मगर,
बदनाम हमें क़िया.......

8163
तुम ज़ाओ छोड़क़े,
तो क़ोई गम नहीं...
मैं तुम्हें बदनाम क़रु,
इतने बुरे भी हम नहीं...!

8164
मेरे सच्चे प्यारक़ो,
ठुक़राक़र वो चल दिए...
बदनाम क़र मुझे,
ज़िंदगीमें तबाही मचा गए...

8165
नाक़ाम हो गईं,
क़ोशिशें सारी मेरी...
बदनाम भी हो गई,
मोहब्बत मेरी.......

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