24 January 2022

8136 - 8140 रिश्ते इश्क़ मशहूर ज़ज़्बात सज़ा राहत शाम बहाना चराग मोड़ मुक़ाम नाम शायरी

 

8136
अपने ज़ज़्बातक़ो,
नाहक़ ही सज़ा देती हूँ ;
होते ही शाम चरागोंक़ो,
बुझा देती हूँ ;
ज़ब राहतक़ा,
मिलता ना बहाना क़ोई,;
लिख़ती हूँ हथेलीपें नाम तेरा,
और लिख़क़े मिटा देती हूँ...

8137
मुसहफ़ी तुर्बतक़ा,
मिरी नाम लेना...
ग़र पूछे तो क़हियो क़ि,
हैं दरग़ाह क़िसीक़ी.......!
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8138
नाम लेवा तुम्हारा हैं तरज़ी,
आदमीक़ी तरह मिलो प्यारे...
                         अब्दुल मन्नान तरज़ी

8139
हर मोड़क़ा क़ोई,
मुक़ाम नहीं होता...
क़ुछ रिश्ते होते हैं दिलसे दिलक़े,
मग़र उनक़ा क़ोई नाम नहीं होता...

8140
इश्क़क़ा नाम,
ग़रचे हैं मशहूर...
मैं तअज़्ज़ुबमें हूँ,
क़ि क़्या शय हैं.......
          सिराज़ औरंग़ाबादी

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