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7 July 2022

8841 - 8845 राहज़न रहग़ुज़र सफ़र फ़र्ज़ राहें शायरी

 

8841
क़ोई तो दोशसे,
बार--सफ़र उतारेग़ा...
हज़ारों राहज़न,
उम्मीदवार राहमें हैं...
                   हैंदर अली आतिश

8842
क़ुछ इस तपाक़से,
राहें लिपट पड़ीं मुझसे...
क़ि मैं तो सम्त--सफ़रक़ा,
निशान भूल ग़या.......
अंज़ुम ख़लीक़

8843
हम थे राहें,
तराशनेक़े लिए...
शामिल इस फ़र्ज़में,
सफ़र तो था.......!
                     बलराज़ हैंरत

8844
ला से लाक़ा सफ़र था,
तो फ़िर क़िस लिए,
हर ख़म--राहसे,
जाँ उलझती रहीं...?
अब्दुल अहद साज़

8845
हज़ार राह चले,
फ़िर वो रहग़ुज़र आई...
क़ि इक़ सफ़रमें रहें,
और हर सफ़रसे ग़ए.......
                     उबैदुल्लाह अलीम