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लफ़्ज़ोंक़ी क़मी तो,
क़भीभी नहीं थी ज़नाब...
हमें तलाश उनक़ी हैं,
ज़ो हमारी ख़ामोशी पढ़ लें......
9602हक़ीक़तमें ख़ामोशी क़भीभी,चुप नहीं रहती हैं...क़भी तुम गौरसे सुनना,,,बहुत क़िस्से सुनाती हैं...
9603
लोग तो सो लेते हैं,
ज़मानेक़ी चहेल पहेलमें..,.
मुझे तो तेरी ख़ामोशी,
सोने नहीं देती,,,,,,
9604इश्क़क़े चर्चे भले हीं,सारी दुनियामें होते होंगे,पर दिल तो,ख़ामोशीसे हीं टूटते हैं...,
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मेरी अर्ज़-ए-शौक़ बे-मअ'नी हैं,
उनक़े वास्ते...
उनक़ी ख़ामोशी भी इक़,
पैग़ाम हैं मेरे लिए...
मुईन अहसन ज़ज़्बी