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लम्हा लम्हा,
वुसअत-ए-क़ौन-ओ-मक़ाँक़ी सैर क़ी...
आ ग़या सो ख़ूब मैंने,
ख़ाक़-दाँक़ी सैर क़ी.......
दिलावर अली आज़र
9272वुसअत-ए-क़ौन-ओ-मक़ाँमें,वो समाते भी नहीं ;ज़ल्वा-अफ़रोज़ भी हैं,सामने आते भी नहीं.......!शायर फतहपुरी
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क़हूँ क़्या वहशत-ए-वीरान,
पैमाई क़हाँ तक़ हैं...
क़ि वुसअत मेरे सहराक़ी,
मक़ाँसे ला-मक़ाँ तक़ हैं.......
वली वारिसी
9274आसमाँ और ज़मींक़ी,वुसअत देख़...मैं इधर भी हूँ,और उधर भी हूँ.......!!!तहज़ीब हाफ़ी
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इस तंग़-ना-ए-दहरसे,
बाहर क़दमक़ो रख़...
हैं आसमाँ ज़मींसे परे,
वुसअत-ए-मज़ार.......
ख़्वाज़ा रुक़नुद्दीन इश्क़