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23 September 2017

1776 - 1780 दिल तमन्ना बगैर मजबूर आँख मौसम भूल वक्त कदम आँगन हैरान मुकाम आदतें शायरी


1776
ना थी मेरी "तमन्ना",
कभी तेरे बगैर रहनेकी ",
लेकिन...
मजबूरको, मजबूरकी,
मजबूरियाँ, मजबूर कर देती हैं...

1777
आ देख मेरी आँखोंके,
ये भीगे हुए मौसम,
ये किसने कह दिया,
कि तुझे भूल गये हैं हम...

1778
कभी वक्त मिले तो, रखना कदम,
मेरे दिलके आँगनमें !
हैरान रह जाओगे ...
मेरे दिलमें, अपना मुकाम देखकर . . .

1779
आदतें बुरी नहीं, शौक ऊँचे हैं,
वर्ना किसी ख्वाबकी,
इतनी औकात नहीं,
की हम देखे और पुरा ना हो !

1780
आँख उठाकर भी न देखूँ,
जिससे मेरा दिल न मिले,
जबरन सबसे हाथ मिलाना,
मेरे बसकी बात नहीं . . .