Showing posts with label शौक़ नूर चराग़ फ़ज़ाएँ मंज़िल राहबर राहें शायरी. Show all posts
Showing posts with label शौक़ नूर चराग़ फ़ज़ाएँ मंज़िल राहबर राहें शायरी. Show all posts

25 April 2022

8541 - 8545 शौक़ नूर चराग़ फ़ज़ाएँ मंज़िल राहबर राहें शायरी

 

8541
क़िया ये शौक़ने अंधा मुझे,
सूझा क़ुछ...
वग़र्ना रब्तक़ी उससे,
हज़ार राहें थीं.......
                           अमीर मीनाई

8542
नई राहें,
निक़लती रही हैं ;
ये लग़्ज़िश,
राहबरसी हो ग़ई हैं...ll
मुख़्तार हाशमी

8543
नई फ़ज़ाएँ,
नई निक़हतें, नई राहें...
ग़ुल--मुरादसे दामनक़ो,
मुश्क़-बार क़रें.......
                     अज़ीज़ बदायूनी

8544
उसीने राह,
दिख़लाई ज़हाँक़ो...
ज़ो अपनी राहपर,
तन्हा ग़या था.......
मनीश शुक़्ला

8545
ग़ुज़र ज़ा,
अक़्लसे आग़े क़ि...
ये नूर चराग़--राह हैं,
मंज़िल नहीं हैं.......
                   अल्लामा इक़बाल