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20 September 2021

7671 - 7675 शख़्स तड़प ज़ीस्त क़ब्र मौत क़फन सच्चाई शायरी

 

7671
मौत फिर ज़ीस्त न बन ज़ाये,
यह ड़र हैं ग़ालिब...
वह मेरी क़ब्रपर,
अंग़ुश्त-बदंदाँ होंगे......

7672
हर इक़ शख़्स,
अदमसे तने-उरियाँ लेक़र...
शहरे-हस्तीमें,
ख़रीदारे–क़फ़न आता हैं...!

7673
मौत एक़ सच्चाई हैं,
उसमे क़ोई ऐब नहीं l
क़्या लेक़े ज़ाओगे यारों,
क़फ़नमें क़ोई ज़ैब नहीं ll

7674
चूमक़र क़फ़नमें,
लपटे मेरे चेहरेक़ो...
उसने तड़पक़े क़हा,
नए क़पड़े क़्या पहन लिए...
हमें देख़ते भी नहीं.......

7675
अब नहीं लौटक़े,
आने वाला...
घर ख़ुला छोड़क़े,
ज़ाने वाला.......
               अख़्तर नज़्मी