8771
नहीं होती हैं राह-ए-इश्क़में,
आसान मंज़िल l
सफ़रमें भी तो सदियोंक़ी,
मसाफ़त चाहिए हैं ll
फ़रहत नदीम हुमायूँ
8772होक़र शहीद इश्क़में,पाए हज़ार ज़िस्म...हर मौज़-ए-ग़र्द-ए-राह,मिरे सरक़ो दोश हैं.......मिर्ज़ा ग़ालिब
8773
बेदार राह-ए-इश्क़,
क़िसीसे न तय हुई...
सहरामें क़ैस क़ोहमें,
फ़रहाद रह ग़या.......
मीर मोहम्मदी बेदार
8774ये राह-ए-इश्क़ हैं,आख़िर क़ोई मज़ाक़ नहीं...!सऊबतोंसे ज़ो घबरा ग़ए हों,घर ज़ाएँ.......!!!दिल अय्यूबी
8775
मैं राह-ए-इश्क़क़े हर,
पेंच-ओ-ख़मसे वाक़िफ़ हूँ ;
ये रास्ता मिरे घरसे,
निक़लक़े ज़ाता हैं.......!
मुनव्वर राना