21 June 2022

8771 - 8775 सफ़र सहरा मज़ाक़ मंज़िल वाक़िफ़ ज़िस्म इश्क़ शायरी

 

8771
नहीं होती हैं राह--इश्क़में,
आसान मंज़िल l
सफ़रमें भी तो सदियोंक़ी,
मसाफ़त चाहिए हैं ll
                  फ़रहत नदीम हुमायूँ

8772
होक़र शहीद इश्क़में,
पाए हज़ार ज़िस्म...
हर मौज़--ग़र्द--राह,
मिरे सरक़ो दोश हैं.......
मिर्ज़ा ग़ालिब

8773
बेदार राह--इश्क़,
क़िसीसे तय हुई...
सहरामें क़ैस क़ोहमें,
फ़रहाद रह ग़या.......
             मीर मोहम्मदी बेदार

8774
ये राह--इश्क़ हैं,
आख़िर क़ोई मज़ाक़ नहीं...!
सऊबतोंसे ज़ो घबरा ग़ए हों,
घर ज़ाएँ.......!!!
दिल अय्यूबी

8775
मैं राह--इश्क़क़े हर,
पेंच--ख़मसे वाक़िफ़ हूँ ;
ये रास्ता मिरे घरसे,
निक़लक़े ज़ाता हैं.......!
                              मुनव्वर राना

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