2 June 2022

8676 - 8680 शोख़ी महसूस उल्फ़त नक़्श निशाँ मंज़िल राह शायरी

 

8676
अभी इस राहसे,
क़ोई ग़या हैं...
क़हे देती हैं शोख़ी,
नक़्श--पा क़ी.......!
               मीर तस्कीन देहलवी

8677
नक़्श--पा ही,
अदू बन ज़ाए...
अपनी राहें,
बदल रहा हूँ मैं.......
अशफ़ाक़ क़लक़

8678
राह--उल्फ़तक़ा,
निशाँ ये हैं क़ि वो हैं बे-निशाँ...
ज़ादा क़ैसा नक़्श--पा तक़,
क़ोई मंज़िलमें नहीं.......
                       अहसन मारहरवी

8679
पैरवीसे मुमक़िन हैं,
क़ब रसाई मंज़िल तक़...
नक़्श--पा मिटानेक़ो,
ग़र्द--राह क़ाफ़ी हैं.......
अंबरीन हसीब अंबर

8680
यूँ राही--अदम हुई,
बा-वस्फ़--उज़्र--लंग़...
महसूस आज़ तक़ हुए,
नक़्श--पा--शम्अ.......
                अरशद अली ख़ान क़लक़

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