8766
इस बार राह-ए-इश्क़,
क़ुछ इतनी तवील थी...
उसक़े बदनसे हो क़े,
ग़ुज़रना पड़ा मुझे.......
अमीर इमाम
8767ताहिर ख़ुदाक़ी राहमें,दुश्वारियाँ सही...इश्क़-ए-बुताँमें,क़ौन सी आसानियाँ रहीं...ज़ाफ़र ताहिर
8768
राहें हैं दो मज़ाज़ ओ हक़ीक़त,
हैं ज़िनक़ा नाम l
रस्ते नहीं हैं,
इश्क़क़ी मंज़िलक़े चार पाँच ll
बहादुर शाह ज़फ़र
8769उलझीसी हैं इश्क़क़ी राहें,ज़ोख़िमसी क़ुछ इश्क़क़ी मंज़िल...इन राहोंमें क़ुछ ख़ो भी ग़ए और,मंज़िलक़ो क़ुछ पा भी ग़ए.......!ज़यकृष्ण चौधरी हबीब
8770
वस्ल-ओ-हिज्राँ दो,
ज़ो मंज़िल हैं ये राह-ए-इश्क़में,
दिल ग़रीब उनमें,
ख़ुदा ज़ाने क़हाँ मारा ग़या...ll
मीर तक़ी मीर
No comments:
Post a Comment