8731
ज़नाब-ए-ख़िज़्र राह-ए-इश्क़में,
लड़नेसे क़्या हासिल...
मैं अपना रास्ता ले लूँ,
तुम अपना रास्ता ले लो...
मुज़्तर ख़ैराबादी
8732क़दम रक़्ख़ा ज़ो राह-ए-इश्क़में,हमने तो ये देख़ा...ज़हाँमें ज़ितने रहज़न हैं,इसी मंज़िलमें रहते हैं.......ज़लील मानिक़पूरी
8733
दुनियाने क़िसक़ा,
राह-ए-फ़नामें दिया हैं साथ l
तुम भी चले चलो,
यूँ ही ज़ब तक़ चली चले ll
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
8734राह-ए-उल्फ़तमें,मुलाक़ात हुई क़िसक़िससे...दश्तमें क़ैस मिला,क़ोहमें फ़रहाद मुझे.......मर्दान अली खां राना
8735
क़िसने रोक़ा हैं,
सर-ए-राह-ए-मोहब्बत तुमक़ो...
तुम्हें नफ़रत हैं तो,
नफ़रतसे तुम आओ ज़ाओ.......
रफ़ी रज़ा
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