14 June 2022

8731 - 8735 इश्क़ ज़हाँ उल्फ़त मंज़िल मुलाक़ात मोहब्बत फ़ना क़दम रहज़न रास्ता राह शायरी

 

8731
ज़नाब--ख़िज़्र राह--इश्क़में,
लड़नेसे क़्या हासिल...
मैं अपना रास्ता ले लूँ,
तुम अपना रास्ता ले लो...
                             मुज़्तर ख़ैराबादी

8732
क़दम रक़्ख़ा ज़ो राह--इश्क़में,
हमने तो ये देख़ा...
ज़हाँमें ज़ितने रहज़न हैं,
इसी मंज़िलमें रहते हैं.......
ज़लील मानिक़पूरी

8733
दुनियाने क़िसक़ा,
राह--फ़नामें दिया हैं साथ l
तुम भी चले चलो,
यूँ ही ज़ब तक़ चली चले ll
                         शेख़ इब्राहीम ज़ौक़

8734
राह--उल्फ़तमें,
मुलाक़ात हुई क़िसक़िससे...
दश्तमें क़ैस मिला,
क़ोहमें फ़रहाद मुझे.......
मर्दान अली खां राना

8735
क़िसने रोक़ा हैं,
सर--राह--मोहब्बत तुमक़ो...
तुम्हें नफ़रत हैं तो,
नफ़रतसे तुम आओ ज़ाओ.......
                                        रफ़ी रज़ा

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