8786
हमारी राहसे पत्थर उठाक़र,
फेंक़ मत देना...
लग़ी हैं ठोक़रें तब ज़ाक़े,
चलना सीख़ पाए हैं.......!!!
नफ़स अम्बालवी
8787ये राह-ए-तमन्ना हैं,यहाँ देख़क़े चलना...इस राहमें सर मिलते हैं,पत्थर नहीं मिलता.......नसीर तुराबी
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वो मेरी राहमें,
पत्थरक़ी तरह रहता हैं...
वो मेरी राहसे,
पत्थर हटा भी देता हैं...!!!
अंज़ना संधीर
8789हमसे पहले भी,मुसाफ़िर क़ई ग़ुज़रे होंग़े...!क़मसे क़म राहक़े,पत्थर तो हटाते ज़ाते.......!!!राहत इंदौरी
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क़िसीने राहक़ा पत्थर,
हमींक़ो ठहराया...
ये और बात हैं क़ि,
फ़िर आईना हमीं ठहरे...
फ़राग़ रोहवी
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