12 June 2022

8726 - 8730 ज़िद ज़िंदग़ी सलाम सितम क़रम मंज़िल तशरीफ़ ख़्वाहिश राह शायरी

 

8726
अग़र ये ज़िद हैं क़ि,
मुझसे दुआ सलाम हो...
तो ऐसी राहसे ग़ुज़रो,
ज़ो राह--आम हो...!
                   ज़मील मुरस्सापुरी

8727
घबरा सितमसे,
क़रमसे, अदासे l
हर मोड़ यहाँ,
राह दिख़ानेक़े लिए हैं ll
महबूब ख़िज़ां

8728
क़ोई मंज़िल,
आख़िरी मंज़िल नहीं होती फ़ुज़ैल ;
ज़िंदग़ी भी हैं,
मिसाल--मौज़--दरिया राह-रौ ll
                                    फ़ुज़ैल ज़ाफ़री

8729
अग़र फ़ूलोंक़ी ख़्वाहिश हैं,
तो सुन लो...
क़िसीक़ी राहमें,
क़ाँटे रख़ना.......
ताबिश मेहदी

8730
तशरीफ़ लाओ,
क़ूचा--रिंदाँमें वाइज़ो...
सीधीसी राह तुमक़ो,
बता दें नज़ातक़ी.......!!!
               लाला माधव राम जौहर

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