8726
अग़र ये ज़िद हैं क़ि,
मुझसे दुआ सलाम न हो...
तो ऐसी राहसे ग़ुज़रो,
ज़ो राह-ए-आम न हो...!
ज़मील मुरस्सापुरी
8727घबरा न सितमसे,न क़रमसे, न अदासे lहर मोड़ यहाँ,राह दिख़ानेक़े लिए हैं llमहबूब ख़िज़ां
8728
क़ोई मंज़िल,
आख़िरी मंज़िल नहीं होती फ़ुज़ैल ;
ज़िंदग़ी भी हैं,
मिसाल-ए-मौज़-ए-दरिया राह-रौ ll
फ़ुज़ैल ज़ाफ़री
8729अग़र फ़ूलोंक़ी ख़्वाहिश हैं,तो सुन लो...क़िसीक़ी राहमें,क़ाँटे न रख़ना.......ताबिश मेहदी
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तशरीफ़ लाओ,
क़ूचा-ए-रिंदाँमें वाइज़ो...
सीधीसी राह तुमक़ो,
बता दें नज़ातक़ी.......!!!
लाला माधव राम जौहर
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