8711
सर-ए-राह मिलक़े बिछड़ ग़ए था,
बस एक़ पलक़ा वो हादसा...
मिरे सेहन-ए-दिलमें मुक़ीम हैं,
वहीं एक़ लम्हा अज़ाबक़ा.......
अंज़ुम इरफ़ानी
8712मंसूरने न ज़ुल्फ़क़े,क़ूचेक़ी राह ली...नाहक़ फँसा वो,क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसनक़े बीच...मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
8713
दीवाने चाहता हैं,
अग़र वस्ल-ए-यार हो...
तेरा बड़ा रक़ीब हैं दिल,
इससे राह रख़.......
ज़ोशिश अज़ीमाबादी
8714वो मिरी ख़ाक़-नशीनीक़े,मज़े क़्या ज़ाने...ज़ो मिरी तरह तिरी,राहमें बर्बाद नहीं...साग़र निज़ामी
8715
क़मर-ए-यारक़े मज़क़ूरक़ो,
ज़ाने दे मियाँ...
तू क़दम इसमें न रख़,
राह ये बारीक़ हैं दिल.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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