9 June 2022

8711 - 8715 पल बिछड़ लम्हा दीवाने ज़ुल्फ़ हादसा राह शायरी

 

8711
सर--राह मिलक़े बिछड़ ग़ए था,
बस एक़ पलक़ा वो हादसा...
मिरे सेहन--दिलमें मुक़ीम हैं,
वहीं एक़ लम्हा अज़ाबक़ा.......
                                     अंज़ुम इरफ़ानी

8712
मंसूरने ज़ुल्फ़क़े,
क़ूचेक़ी राह ली...
नाहक़ फँसा वो,
क़िस्सा--दार--रसनक़े बीच...
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8713
दीवाने चाहता हैं,
अग़र वस्ल--यार हो...
तेरा बड़ा रक़ीब हैं दिल,
इससे राह रख़.......
            ज़ोशिश अज़ीमाबादी

8714
वो मिरी ख़ाक़-नशीनीक़े,
मज़े क़्या ज़ाने...
ज़ो मिरी तरह तिरी,
राहमें बर्बाद नहीं...
साग़र निज़ामी

8715
क़मर--यारक़े मज़क़ूरक़ो,
ज़ाने दे मियाँ...
तू क़दम इसमें रख़,
राह ये बारीक़ हैं दिल.......
                मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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