8761
राहमें तुम्हारी,
मिट्टीक़े घर नहीं आते...
इसलिए तो तुम्हे हम,
नज़र नहीं आते.......
क़ैफ़ी बिलग्रामी
8762तिरे क़ूचेक़ी,शायद राह भूली...सबा फ़िरती हैं मुज़्तर,क़ू-ब-क़ू आज़.......ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
8763
सारी ख़िल्क़त राहमें हैं,
और हो मंज़िलमें तुम...
दोनों आलम दिलसे बाहर हैं,
फ़क़त हो दिलमें तुम.......!!!
अहमद हुसैन माइल
8764आते आते,राहपर वो आएँग़े...ज़ाते ज़ाते,बद-ग़ुमानी ज़ाएग़ी...नूह नारवी
8765
क़रीब रह क़ि भी तू,
मुझसे दूर दूर रहा ;
ये और बात क़ि,
बरसोंसे तेरे पास हूँ मैं...!!!
क़माल ज़ाफ़री
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