20 June 2022

8761 - 8765 नज़र सबा मंज़िल दिल क़रीब राह शायरी

 

8761
राहमें तुम्हारी,
मिट्टीक़े घर नहीं आते...
इसलिए तो तुम्हे हम,
नज़र नहीं आते.......
                   क़ैफ़ी बिलग्रामी

8762
तिरे क़ूचेक़ी,
शायद राह भूली...
सबा फ़िरती हैं मुज़्तर,
क़ू--क़ू आज़.......
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर

8763
सारी ख़िल्क़त राहमें हैं,
और हो मंज़िलमें तुम...
दोनों आलम दिलसे बाहर हैं,
फ़क़त हो दिलमें तुम.......!!!
                        अहमद हुसैन माइल

8764
आते आते,
राहपर वो आएँग़े...
ज़ाते ज़ाते,
बद-ग़ुमानी ज़ाएग़ी...
नूह नारवी

8765
क़रीब रह क़ि भी तू,
मुझसे दूर दूर रहा ;
ये और बात क़ि,
बरसोंसे तेरे पास हूँ मैं...!!!
                      क़माल ज़ाफ़री

No comments:

Post a Comment