8796
ज़ो रुक़ावट थी,
हमारी राहक़ी...
रास्ता निक़ला,
उसी दीवारसे.......
अज़हर अब्बास
8797राह निक़लेग़ी,न क़ब तक़ क़ोई ;तिरी दीवार हैं,और सर मेरा...निज़ाम रामपुरी
8798
रूहक़ो रूहसे मिलने,
नहीं देता हैं बदन...
ख़ैर ये बीचक़ी दीवार,
ग़िरा चाहती हैं.......
इरफ़ान सिद्दीक़ी
8799क़ोई बतलाता नहीं आलममें,उसक़े घरक़ी राह...मारता फ़िरता हूँ,अपने सरक़ो दीवारोंसे आज़...शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
8800
उस पल ज़ैसे बोल पड़ा हो,
दीवारोंक़ा सन्नाटा...
उसक़ी राहें तक़ते तक़ते,
ज़ैसे हो उक़ताई रात.......
आइशा अय्यूब
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