5 June 2022

8686 - 8690 ज़िंदग़ी सहरा सफ़र इश्क़ राह शायरी

 

8686
रक्खी ज़िंदग़ीने मिरी,
मुफ़लिसीक़ी शर्म...
चादर बनाक़े राहमें,
फैला ग़ई मुझे.......
              क़ैसर-उल ज़ाफ़री

8687
ज़िंदग़ी वादी सहराक़ा,
सफ़र हैं क़्यूँ हैं...
इतनी वीरान मिरी,
राह-ग़ुज़र हैं क़्यूँ हैं.......
इब्राहीम अश्क़

8688
इस ख़ौफ़में क़ि,
ख़ुद भटक़ ज़ाएँ राहमें...
भटक़े हुओंक़ो,
राह दिख़ाता नहीं क़ोई.......
                            अनवर ताबाँ

8689
ये क़्यूँ क़हते हो,
राह--इश्क़पर चलना हैं हमक़ो,
क़हो क़ि ज़िंदग़ीसे,
अब फ़राग़त चाहिए हैं.......
फ़रहत नदीम हुमायूँ

8690
ज़िंदग़ी टूटक़े बिख़री हैं,
सर--राह अभी...
हादिसा क़हिए इसे,
या क़ि तमाशा क़हिए...
                    दाऊद मोहसिन

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