17 June 2022

8751 - 8755 इशारे आईना आफ़्ताब आसमाँ राह शायरी

 

8751
अक़्ससे अपने अग़र,
राह नहीं तुमक़ो तो ज़ान...
ये इशारेसे फ़िर,
आईनेमें क़्या होते हैं...
                 मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8752
हम आपक़ो,
देख़ते थे पहले...
अब आपक़ी,
राह देख़ते हैं.......
क़ैफ़ी हैंदराबादी

8753
ग़म--दुनिया,
तुझे क़्या इल्म तेरे वास्ते...
क़िन बहानोंसे तबीअत,
राहपर लाई ग़ई.......
                   साहिर लुधियानवी

8754
या दिल हैं मिरा,
या तिरा नक़्श--क़फ़--पा हैं...
ग़ुल हैं क़ि इक़ आईना,
सर--राह पड़ा हैं.......
मुंशी नौबत राय नज़र लख़नवी

8755
आक़र तिरी ग़लीमें,
क़दम-बोसीक़े लिए...
फ़िर आसमाँक़ी,
भूल ग़या राह आफ़्ताब.......!
                      शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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