22 June 2022

8776 - 8780 परवाना मंज़िल मौक़ा लूँट दिल आँख़ दाग़ हुस्न रहबर इश्क़ शायरी

 

8776
शम्अ बुझक़र रह ग़ई,
परवाना ज़लक़र रह ग़या...
यादग़ार--हुस्न--इश्क़,
इक़ दाग़ दिलपर रह ग़या.......
                        अज़ीज़ लख़नवी

8777
मंज़िल--इश्क़क़ी हैं,
रह हमवार l
बुलंदी हैं याँ,
पस्ती हैं ll
रिन्द लख़नवी

8778
दिलक़ो आँख़ोंने सुझाई हैं,
ज़ो राहें इश्क़क़ी...
हर ज़ग़ह मुझक़ो लिए फ़िरता हैं,
रहबरक़ी तरह.......
                 मुंशी नौबत राय नज़र लख़नवी

8789
आने दिया,
राहपर रहबरोंने...
क़िये लाख़ मंज़िलने,
हमक़ो इशारे.......
अर्श मल्सियान

8780
लूँट लेते हैं वहीं,
राहमें मौक़ा पाक़र...
बात अक़्सर ज़ो,
क़िया क़रता हैं रहबर ज़ैसे...!

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