6 June 2022

8696 - 8700 आँख़ सूरत तबस्सुम ज़ख़्म फ़िज़ा फ़ासले साया दीवार पत्थर शुक्र राह शायरी

 

8696
क़िसीक़ी राहमें आनेक़ी,
ये भी सूरत हैं...
क़ि सायाक़े लिए,
दीवार हो लिया ज़ाए...
                      ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

8697
आँख़ोंमें हैं लिहाज़,
तबस्सुम-फ़िज़ा हैं लब...
शुक्र--ख़ुदाक़े आज़ तो,
क़ुछ राहपर हैं आप.......
नसीम देहलवी

8698
हैं मिरी राहक़ा पत्थर,
मिरी आँख़ोंक़ा हिज़ाब ;
ज़ख़्म बाहरक़े,
ज़ो अंदर नहीं ज़ाने देते ll
                           ख़ुर्शीद रिज़वी

8699
तुम तो ठुक़राक़र ग़ुज़र ज़ाओ,
तुम्हें टोक़ेग़ा क़ौन...
मैं पड़ा हूँ राहमें,
तो क़्या तुम्हारा ज़ाएग़ा.......?
नियाज़ फ़तेहपुरी

8700
क़ितने शिक़वे ग़िले हैं,
पहले ही...
राहमें फ़ासले हैं,
पहले ही.......
                   फ़ारिग़ बुख़ारी

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