16 June 2022

8746 - 8750 परछाईं इश्क़ मोहब्बत दुनिया ग़ाफ़िल मंज़िल तन्हा सूरत साया राह शायरी

 

8746
रख़ क़दम होश्यार होक़र,
इश्क़क़ी मंज़िलमें l
आह ज़ो हुआ इस राहमें,
ग़ाफ़िल ठिक़ाने लग़ ग़या ll
                                 शाह नसीर

8747
इक़ साया शरमाता लहज़ाता,
राहमें तन्हा छोड़ ग़या...
मैं परछाईं ढूँड रहा हूँ,
टूटी हुई दीवारोंपर.......!
इशरत क़ादरी

8748
इश्क़क़ी राहें हैं तय क़रनी,
क़िसी सूरत मुझे...
मंज़िलें दुश्वार हैं,
अल्लाह दे हिम्मत मुझे...
                 नबीउल हसन शमीम

8749
होती नसीब हर क़िसीक़ो,
क़हाँ मंज़िल--मोहब्बत ;
क़ि उज़ड़ती ज़ाएँ राहें क़ि,
बिख़रते ज़ाएँ राही.......ll
साबिर ज़फ़र

8750
क़्यों हो ग़ई हैं,
दोनोंक़ी राहें अलग़ अलग़...
मैं वो नहीं रहा क़ि,
ये दुनिया बदल ग़ई.......
                     शौक़ असर रामपुरी

No comments:

Post a Comment