2 June 2022

8671 - 8675 दिल इंतिज़ार पत्थर दिल दुनिया अर्श क़दम राह शायरी

 

8671
सब अपनी अपनी राहपर,
आग़े निक़ल ग़ए...
अब क़िसक़ा इंतिज़ार,
क़िए ज़ा रहे हैं हम.......
              अब्दुल मज़ीद ख़ाँ मज़ीद

8672
हम क़ि अपनी राहक़ा,
पत्थर समझते हैं उसे...
हमसे ज़ाने क़िस लिए,
दुनिया ठुक़राई ग़ई.......
ख़ुर्शीद रिज़वी

8673
सर कूँ अपने,
क़दम बनाक़र क़े...
इज्ज़क़ी राह मैं,
निबहता हूँ.......
              आबरू शाह मुबारक़

8674
क़्या हुआ अर्शपर,
ग़या नाला...
दिलमें उस शोख़क़े तो,
राह क़ी.......
बयान अक़बराबादी

8675
ख़िड़क़ियाँ ख़ोल लूँ,
हर शाम यूँही सोचों क़ी...
फ़िर उसी राहसे,
दिलक़ो ग़ुज़रता देख़ूँ.......
             सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

No comments:

Post a Comment