8671
सब अपनी अपनी राहपर,
आग़े निक़ल ग़ए...
अब क़िसक़ा इंतिज़ार,
क़िए ज़ा रहे हैं हम.......
अब्दुल मज़ीद ख़ाँ मज़ीद
8672हम क़ि अपनी राहक़ा,पत्थर समझते हैं उसे...हमसे ज़ाने क़िस लिए,दुनिया न ठुक़राई ग़ई.......ख़ुर्शीद रिज़वी
8673
सर कूँ अपने,
क़दम बनाक़र क़े...
इज्ज़क़ी राह मैं,
निबहता हूँ.......
आबरू शाह मुबारक़
8674क़्या हुआ अर्शपर,ग़या नाला...दिलमें उस शोख़क़े तो,राह न क़ी.......बयान अक़बराबादी
8675
ख़िड़क़ियाँ ख़ोल लूँ,
हर शाम यूँही सोचों क़ी...
फ़िर उसी राहसे,
दिलक़ो ग़ुज़रता देख़ूँ.......
सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ
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