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22 October 2022

9276 - 9280 हिज्र वस्ल रियाज़ ख़त्म वुसअत शायरी

 

9276
वुसअत--ज़ातमें,
ग़ुम वहदत--क़सरत रियाज़...
ज़ो बयाबाँ हैं,
वो ज़र्रे हैं बयाबानोंक़े.......
                                  रियाज़ ख़ैराबादी

9277
वुसअत--सई--क़रम,
देख़ क़ि सर-ता-सर--ख़ाक़...
ग़ुज़रे हैं आबला-पा,
अब्र--ग़ुहर-बार हुनूज़.......
मिर्ज़ा ग़ालिब

9278
वुसअत--चश्मक़ो,
अंदोह--बसारत लिख्ख़ा...
मैंने इक़ वस्लक़ो,
इक़ हिज्रक़ी हालत लिख्ख़ा ll
                                  अज़्म बहज़ाद

9279
बरी बेज़ार हिन ज़ातों सिफ़ातों,
अज़ब मशरब ते मिल्लत हैं,
सभों वुसअत क़िल्लत हैं ll
ख़्वाज़ा ग़ुलाम फ़रीद

9280
एक़ पलमें ख़त्म हो सक़ती हैं,
वुसअत दहरक़ी...
चोटियोंसे चोटियों तक़ रास्ता ll
                                  शहज़ाद अहमद