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11 May 2020

5856 - 5860 हिरासत याद जमानत ख़ुशी इल्ज़ाम जख़्म क़सम वक़्त बेरुखी अश्क़ आँसू आँखें शायरी



5856
हजारो अश्क़,
मेरी आँखोंकी हिरासतमें थे...
फिर तेरी याद आई,
और इन्हें जमानत मिल गई...!

5857
ख़ुशीसे आँखें नम हैं मेरी,
बस एक चीज़ खल रही अब...
वो हैं तेरी कमी.......!

5858
अपने जख़्मोंके संग,
तेरे इल्ज़ाम भी धो दूँ मैं;
ख़ुदाकी क़सम बहुत पानी हैं,
इन आँखोंमें.......

5859
सोचकर बाज़ार गया,
अपने कुछ आँसू बेचने...
हर खरीददार बोला,
अपनोंके दिये तोहफे,
बेचा नहीं करते.......

5860
भीगी नहीं थी मेरी आँखें,
कभी वक़्तके मारसे...
देख तेरी थोड़ीसी बेरुखीने,
इन्हें जी भरके रुला दिया...