10066
हर्फ़को लफ़्ज़ न कर,
लफ़्ज़को इज़हार न दे l
कोई तस्वीर मुकम्मल न बना,
उसके लिए...
मोहम्मद अहमद रम्ज़
10067
सूरत छुपाईए,
किसी सूरत-परस्तसे ;
हम दिलमें नक़्श,
आपकी तस्वीर कर चुके ll
अनवर देहलवी
10068
आता था जिसको देखके,
तस्वीरका ख़याल...
अब तो वो कील भी,
मिरी दीवारमें नहीं......
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
10069
ताब-ए-नज़्ज़ारा नहीं,
आईना क्या देखने दूँ..
और बन जाएँगे तस्वीर,
जो हैराँ होंगे...!
मोमिन ख़ाँ मोमिन
10070
कल तेरी तस्वीर,
मुकम्मल की मैने ;
फ़ौरन उसपर,
तितली आकर बैठ गई !!!
इरशाद ख़ान सिकंदर