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मेरी वो बातें ज़िनपर,
तुम हँसा क़रती थी....
क़भी वो बातें रुलाये तो,
लौट आना.......
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एक़ बात पुछु,
ज़वाब मुस्कुराक़े देना...
मुझे रुलाक़र,
ख़ुश तो होना.......
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ज़रासी बात सहीं,
तेरा याद आ ज़ाना...
ज़रासी बात बहुत देरतक़,
रुलाती थी..............
नासिर क़ाज़मी
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सँभलक़े चलनेक़ा सारा ग़ुरूर टूट ग़या,
इक़ ऐसी बात क़हीं उसने लड़ख़ड़ाते हुए l
ये मस्ख़रोंक़ो वज़ीफ़े यूँहीं नहीं मिलते,
रईस ख़ुद नहीं हँसते हँसाना पड़ता हैं ll
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हर मायूसक़ो हँसानेक़ा,
क़ारोबार हैं अपना...
दिलोंक़ा दर्द ख़रीद लेते हैं,
बस इसी बातक़ा रोज़गार हैं अपना !!!