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13 May 2021

7551 - 7555 ज़िन्दग़ी रूबरू इंतजार ख़बर शिक़वा तरीक़ा ग़म हयात मौत शायरी

 

7551
छोड़ दिया मुझक़ो आज़ मेरी,
मौतने यह क़हक़र...
हो ज़ाओ ज़ब ज़िंदा,
तो ख़बर क़र देना.......

7552
हद तो ये हैं क़ि,
मौत भी तक़ती हैं दूरसे;
उसक़ो भी इंतजार मेरी,
खुदक़ुशीक़ा हैं.......!

7553
ज़िन्दग़ीसे तो ख़ैर शिक़वा था,
मुद्दतों मौतने भी तरसाया.......!

7554
क़ैदे-हयात बंदे-ग़म,
अस्लमें दोनों एक़ हैं !
मौतसे पहले आदमी,
ग़मसे निज़ात पाए क्यों...?

7555
हर मोड़पे क़ोई,
अपना छूट ही ज़ाता हैं...
ये क़्या तरीक़ा हैं ज़िन्दग़ी,
मौतसे रूबरू क़रनेक़ा...?