Showing posts with label ज़ुदा तन्हा निग़ाहें राहें दुनिया मक़्सद यक़ीं मंज़िल शायरी. Show all posts
Showing posts with label ज़ुदा तन्हा निग़ाहें राहें दुनिया मक़्सद यक़ीं मंज़िल शायरी. Show all posts

19 July 2022

8891 - 8895 ज़ुदा तन्हा निग़ाहें राहें दुनिया मक़्सद यक़ीं मंज़िल शायरी

 

8891
ज़ुदा मक़्सद, ज़ुदा मशरब,
ज़ुदा राहें, ज़ुदा मंज़िल...
दुनिया मेरे क़ाम आई,
मैं दुनियाक़े क़ाम आया...
                       ख़लिश बड़ौदवी

8892
मुझे ग़या यक़ीं सा,
क़ि यहीं हैं मेरी मंज़िल...
सर--राह ज़ब क़िसीने,
मुझे दफ़अतन पुक़ारा.......
शक़ील बदायुनी

8893
बहुत बे-रब्त रहनेक़ा,
ये ख़म्याज़ा हैं शायद...
क़ि मंज़िल सामने हैं,
और राहें क़ट चुक़ी हैं.......
                   ख़ुशबीर सिंह शाद

8894
अपनी अपनी राहें हैं,
अपनी अपनी मंज़िल हैं l
क़ार-ग़ाह--हस्तीमें,
रहते हैं सभी तन्हा ll
रफ़ीक़ ख़ावर ज़स्कानी

8895
ज़ुदा मेरी मंज़िल, ज़ुदा तेरी राहें ;
मिलेंग़ी अब तेरी मेरी निग़ाहें l
मुझे तेरी दुनियासे हैं दूर ज़ाना,
ज़ी क़ो ज़लाना मुझे भूल ज़ाना ll
                            राज़ा मेहदी अली ख़ाँ