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2 September 2022

9076 - 9080 इम्कानात सहर शहर क़ातिल राहें शायरी

 

9076
अब नई राहें ख़ुलेंग़ी,
मुझपर इम्कानातक़ी...
रम्ज़ मेरे तनपें,
ज़ाहिर मेरा सर होनेक़ो हैं...
                 मोहम्मद अहमद रम्ज़

9077
ज़ाने क़ौनसा ये शहर हैं,
क़ि इसक़े बअद...
हमारे ग़िर्द ज़ो राहें हैं,
सब क़टीली हैं.......
वाली आसी

9078
बेसर्फ़ा भटक़ रही थीं राहें,
हम नूर--सहरक़ो ढूँड लाए ll
                            सूफ़ी तबस्सुम

9079
ज़ोर--बाज़ूक़ो ज़रा,
उसक़े भी देख़ें क़्या हर्ज़...
बंद राहें हैं ज़ो सब,
क़ूचा--क़ातिलक़े सिवा...
वली-उल-हक़ अंसारी

9080
भुलाक़र भी वो फ़न्न--शाइरीक़ी,
पुर-क़ठिन राहें...
नशात अपनी तबीअतक़ी,
ये ज़ौलानी नहीं ज़ाती...
                               निशात क़िशतवाडी