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6 October 2017

1811 - 1815 मोहब्बत तन्हाई परछाई लब चाह पलक कदर फ़रियाद चाँद चुपके याद उम्मीद अजनबी रख्खुं शायरी


1811
इस कदर हर तरफ तन्हाई हैं,
उजालोमें अंधेरोंकी परछाई हैं,
क्या हुआ जो गिर गये पलकोंसे आँसू,
शायद याद उनकी चुपकेसे चली आई हैं...

1812
न चाहकर भी मेरे लबपर,
फ़रियाद आ जाती हैं,
ऐ चाँद, सामने न आ,
किसीकी याद आ जाती हैं !

1813
चलो इकबार फिरसे,
अजनबी बन जाये हम दोनों;
न मै तुमसे कोई उम्मीद रख्खुं,
ना तुम...

1814
तेरी मोहब्बतको कभी खेल नहीं समजा
वरना खेल तो इतने खेले हैं की कभी
हारे नहीं .....

1815
लौट आके मिलते हैं,
फिरसे अजनबीकी तरह,
तुम हमारा नाम पूछलो और...
हम तुम्हारा हाल पूछते हैं.......!