5901
सोचता हूँ कि,
उसकी याद आख़िर...
अब किसे रातभर,
जगाती हैं...
जौन एलिया
5902
जाने वाले कभी नहीं आते,
जाने वालोंकी याद आती हैं |
सिकंदर अली वज्द
5903
तुम्हारी यादके जब,
ज़ख़्म भरने लगते हैं...
किसी बहाने तुम्हें,
याद करने लगते हैं...
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
5904
एक रौशन दिमाग़ था,
न रहा |
शहरमें इक चराग़ था,
न रहा ||
अल्ताफ़ हुसैन हाली
5905
याद उसकी इतनी,
ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ;
नादान फिर वो जीसे,
भुलाया न जाएगा...
मीर तक़ी मीर