22 May 2020

5901 - 5905 ज़ख़्म रौशन चराग़ नादान याद शायरी


5901
सोचता हूँ कि,
उसकी याद आख़िर...
अब किसे रातभर,
जगाती हैं...
                      जौन एलिया

5902
जाने वाले कभी नहीं आते,
जाने वालोंकी याद आती हैं |
सिकंदर अली वज्द

5903
तुम्हारी यादके जब,
ज़ख़्म भरने लगते हैं...
किसी बहाने तुम्हें,
याद करने लगते हैं...
            फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

5904
एक रौशन दिमाग़ था,
न रहा |
शहरमें इक चराग़ था,
न रहा ||
अल्ताफ़ हुसैन हाली

5905
याद उसकी इतनी,
ख़ूब नहीं 'मीर' बाज़ आ;
नादान फिर वो जीसे,
भुलाया न जाएगा...
                        मीर तक़ी मीर

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