31 May 2020

5946 - 5950 दिल प्यार शख्स ग़म खूबी इन्तजार बुनियाद संगीत मंजिल पत्थर शायरी



5946
जानता हूँ एक ऐसे शख्सको,
मैं भी 'मुनीर'...
ग़मसे पत्थर हो गया,
लेकिन कभी रोया नहीं...!

5947
पत्थरमें एक ही कमी हैं,
कुछ भी करों वह पिघलता नहीं;
लेकिन उसकी एक ही खूबी हैं,
वह कभी बदलता भी नहीं l

5948
लोग इन्तजार करते रह गये,
कि हमें टूटा हुआ देखें...
और हम हैं कि सहते सहते,
पत्थरके हो गये.......!

5949
दिखाई कब दिया करते हैं,
बुनियादके पत्थर...
ज़मींमें जो दब गये,
इमारत उन्हींपे क़ायम हैं...!

5950
पत्थरके दिलमें भी,
जगह बना ही लेता हैं...
ये प्यार हैं,
अपनी मंजिलको पा ही लेता हैं !

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