8 May 2020

5841 - 5845 दिल ख़ूबी खामी जिंदगी नजरें लफ्ज बात जज्बात अफसाना गहराई सुकून शायरी



5841
ख़ूबी और खामी,
दोनों ही होती हैं हर इंसानमें l
जो तराशता हैं उसे ख़ूबी नजर आती हैं,
और जो तलाशता हैं उसे खामी नजर आती हैं ll

5842
उन्हें कामयाबीमें सुकून नजर आया,
तो वो दौड़ते गए...
हमें सुकूनमें कामयाबी दिखी,
तो हम ठहर गए.......!

5843
अब तो इतवारमें भी,
कुछ यूँ हो गयी हैं मिलावट;
छुट्टी तो दिखती हैं,
सुकून नजर नहीं आता...ll

5844
चौराहेपर खड़ी जिंदगी नजरें दौड़ाती हैं,
काश कोई फलक दिख जाए...
जिसपर लिखा हो,
सुकून 0. कि .मी. !!!

5845
लफ्जोकी अहमियत ही नहीं जज्बातोके सामने,
ये तो वो अफसाना हैं जो नजरोंसे बयान हो l
समजे जज्बात दिलकी गहराईसे,
और कोई बात भी हो ll

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