5881
वे सूरतें इलाही,
किस
मुल्क बस्तियाँ हैं...
अब देखनेको जिनके,
आँखें तरसतियाँ हैं.......
मोहम्मद
रफ़ी सौदा
5882
टूट पड़ती थीं घटाएँ,
जिनकी आँखें
देखकर...
वो भरी बरसातमें,
तरसे हैं
पानी के लिए...
सज्जाद बाक़र रिज़वी
5883
आज अगर भर
आई हैं,
बूंदे बरस जाएगी...
कल क्या पता,
किनके लिए,
आँखें तरस जाएगी.......?
5884
पानीकी हर बूंदका,
सम्मान करे;
चाहे वो,
आसमानसे
टपके...
या आँखोंसे ll
5885
अलमारीसे
मिले हुए,
बचपनके
खिलौने...
मेरी आँखोंकी उदासी देख
कर बोले,
"तुम्हें
ही बहुत शौक
था बड़ा होने
का ?"
No comments:
Post a Comment