2 May 2020

5811 - 5815 दिल आलम शोर बेचैन मुनासिब उदास बेवजह बेसबब उदास शायरी



5811
ना खोल मेरे,
मकानके उदास दरवाज़े;
हवाका शोर मेरी,
उलझने बढ़ा देते हैं...

5812
मुनासिब समझो तो,
सिर्फ इतना ही बता दो...
दिल बेचैन हैं बहुत,
कहीं तुम उदास तो नहीं...

5813
बेवजह, बेसबब...
यूहीं उदास रहेते हैं l
अधूरे लोग कहाँ,
आबाद रहेते हैं ll

5814
ख़ाली ख़ाली जो घर था,
एक दम भर गया;
उदास बैठा वो शख़्स,
कल रात मर गया...

5815
एक मुर्दा जल रहा था,
सारा आलम था उदास...
कलके आने वाले मुर्दे खड़े थे,
उसके आस पास.......

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