14 May 2020

5871 - 5875 दिल हसरत लब होठ सलीके ज़माने जुदाई तकल्लुफ अश्क आँसू आँखें शायरी



5871
हसरत तो थी कि,
तेरी आँखका आँसू बन जाऊँ...
मगर तू रोये,
ये हमको गँवारा नहीं.......

5872
लब हिले,
आँखोंमें अश्क आए हैं;
आज हम कितने,
सलीकेसे मुस्कुराए हैं !

5873
तुम मुझे कभी दिलसे,
कभी आँखोंसे पुकारो l
ये होठोंके तकल्लुफ तो,
ज़माने के लिए होते हैं ll

5874
जिसकी आँखोंमें,
कटी थीं सदियाँ...
उसीने सदियोंकी,
जुदाई दे दी.......

5875
इतना बेताब हो,
मुझसे बिछड़ने के लिए...
तुझे आँखोंसे नहीं,
मेरे दिलसे जुदा होना हैं...

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