25 May 2020

5921 - 5925 दिल जिन्दगी उम्मीद आरज़ू रिश्ते साथ ज़िंदगी आँखें घायल गैर तमन्ना शायरी



5921
फूट निकली तो,
कई शहर--तमन्ना डूबे;
एक कतरेको,
तरसती हुई बंजर आँखें...

5822
तुम फिर आओ कि,
तमन्ना फिरसे मचल जाये...
तुम गले लगाओ फिरसे कि,
हम सब कुछ भूल जाये.......

5923
लगे ना नज़र इस रिश्तेको ज़मानेकी,
पड़े ना ज़रूरत कभी एक दूजेको माननेकी !
आप ना छोड़ना मेरा साथ वरना,
तमन्ना ना रहेगी फिर ज़िंदगी जीनेकी...!

5924
घायल किया जब अपनोने,
तो गैरोंसे क्या गिला करना...?
उठाये हैं खंजर जब अपनोने,
तो जिंदगीकी तमन्ना क्या करना...?

5925
तमन्नाओंकी भीड़में,
एक तमन्ना पुरी हो गई...
जिन्दगीसे उम्मीद खत्म और,
मौतकी आरज़ू पुरी हो गई.......!

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