5851
नींद थी जो
रातभर,
दूर खड़ी मुझे
देखती रही...
कौन था जो
रात भर,
मेरी आँखोंमें जगता रहा...
5852
तुझे देखे बिना
तेरी तस्वीर बना
सकता हूँ,
तुझसे मिले बिना
तेरा हाल बता
सकता हूँ;
हैं मेरी मोहब्बतमें
इतना दम,
तेरी आँखका आँसू अपनी
आँखसे गिरा सकता
हूँ...
5853
वो किताब लौटानेका,
बहाना तो लाखोंमें
था...!
लोग ढुँढते रहें खत,
पैग़ाम तो आँखोंमें
था...!!!
5854
नज़रें बहुत तेज
हैं ना तुम्हारी,
फिर क्यूँ.......
मोहब्बत
देख नहीं पाए,
आँखोंमें
हमारी...?
5855
इश्क़ वही हैं
जो हो एकतरफा
हो,
इज़हार-
ए-इश्क़ तो
ख्वाहिश बन जाती
हैं,
हैं अगर मोहब्बत
तो आँखोंमें पढ़
लो...
ज़ुबानसे
इज़हार तो नुमाइश
बन जाती हैं...!
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