17 May 2020

5876 - 5880 तस्वीर ख्वाब गुनहगार गहराई राज उलझन सौगात बात आदत आँखें शायरी


5876
मिटा दे उसकी तस्वीर,
मेरी आँखोंसे मेरे खुदा...
अब तो वो मुझे,
ख्वाबोंमें भी अच्छा नहीं लगता...

5877
गुनहगारोंकी आँखोंमें,
झूठे ग़ुरूर होते हैं...
यहाँ शर्मिन्दा तो सिर्फ़,
बेक़सूर होते हैं...

5878
पानी समुन्दरमें हो,
या आँखोंमें...
गहराई और राज,
दोनोंमें होते हैं...

5879
उलझके आपकी आँखोंमें करलू खूब बाते,
उलझते आपकी बातोमें करलू राते सौगाते;
उलझनोंमें सदा उलझके रहनेकी आपकी आदतें,
सुलझाए कैसे बस इसी उलझनमें कटती हैं राते बरबादे l
भाग्यश्री

5880
वाकई बड़े मज़ेदार हो तुम,
एक सीमित साझ़ेदार हो तुम;
तुम्हारी हर बात सरआँखोंपर कहते हो,
पर मुकम्मल वही करते हो जो तुम्हे फायदेमंद हो l
                                                                    भाग्यश्री

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